अरब देशों के साथ बढ़ते भारत के संबंध

भारत के अरब देशों के साथ बढ़ते संबंध, इनका विस्तार और इनकी गहराई, न केवल दक्षिण एशिया बल्कि विश्व में भारत की बढ़ती साख का ही संकेत हैं. वर्ष 2024 की शुरुआत में हुयी दो बड़ी घटनाओं ने विश्व  का ध्यान खींचा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय कूटनीति की बड़ी सफलता के रूप में इन्हें देखा जा रहा है. भारतीय विदेश नीति के लिहाज़ से सबसे सुखद खबर संयुक्त अरब अमीरात से आयी जब वहां हिंदू मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया. दूसरी सुखद खबर भारत और भारतीयों के लिये यह रही कि कतर से भारत के वो आठ पूर्व नौसैनिक रिहा होकर वतन लौट पाये जिन्हें कुछ महीनों पहले वहां फांसी की सज़ा सुनायी गयी थी. एक इस्लामिक देश में फांसी की सज़ा को पहले उम्रकैद में बदला गया और फिर माफी दी गयी, यह इन नौसैनिकों के लिये और इनके परिजनों के लिये किसी चमत्कार से कम नहीं है. इसके पीछे भारत की दुनिया में बढ़ती साख तथा मोदी सरकार की कूटनीति की भी प्रमुख भूमिका रही है.

पूरी दुनिया में इन दो घटनाओं के बाद भारतीय कूटनीति की सराहना की जा रही है. पाकिस्तान के लिये तो यह दोनों ही खबरें किसी कुठाराघात से कम नहीं है.  अनेक पाकिस्तानियों ने संयुक्त अरब अमीरात और कतर की आलोचना करते हुये, उन्हें इस्लाम का विरोधी तक ठहरा दिया. कई पाकिस्तानियों ने सोशल मीडिया पर यूएई और कतर के निर्णयों को इस्लामिक  एकता के विरूद्ध करार दिया. पाकिस्तानियों के इस रुख की यूएई और कतर के नागरिकों द्वारा कड़ी भर्त्सना की गयी.

कुछ दशक पहले तक यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि किसी इस्लामिक देश के शासक और सरकार आगे बढ़कर हिंदू मंदिर बनवायेंगे. मूर्ति पूजा को लेकर हिंदू समुदाय का विरोध करने वाले कट्टरपंथियों का पूरा एजेंडा जैसे एक ही झटके में विफल कर दिया गया जब यूएई का अबूधावी एक भव्य, विशाल हिंदू मंदिर का साक्षी बना. इस कदम ने भारत और यूएई को एक ऐसे अटूट बंधन में बांध दिया है जिससे आने वाले दशकों में दोनों देशों के बीच सहयोग के और बढ़ते जाने की ही प्रबल संभावना है.  यह मंदिर यूएई में  भारतीय संस्कृति और  आध्यात्मिकता का प्रमुख केन्द्र रहेगा जहां सभी धर्मों के लोग भारतीय संस्कृति की एक झलक पा सकेंगे. साथ ही आस्था का यह केन्द्र, वहां बसे उन लाखों भारतीय मूल के लोगों के लिये भी एक ऐसा आधारस्तंभ रहेगा जिससे संयुक्त अरब अमीरात में वे और सुरक्षित महसूस कर सकेंगे. वहां के शासन और समाज के प्रति उनके मन में आदर का भाव ही बढ़ेगा जो दोनों देशों के परस्पर विश्वास व मैत्री को और प्रगाढ़ करेगा.

यूएई में मंदिर के उद्घाटन से पहले जनवरी 2024 में, वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन 2024 में भाग लेने के लिए भारत का दौरा किया था. उस समय भारत ने यूएई के शासक को विशेष सम्मान दिया और पीएम मोदी ने व्यक्तिगत रूप से संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति का स्वागत किया. पूरी दुनिया विशेषकर इस्लामिक देशों ने देखा कि कैसे अभूतपूर्व रूप से संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति का भारत में स्वागत हुआ और उन्होंने पीएम मोदी के साथ अहमदाबाद में एक रोड शो भी किया. दोनों नेताओं का अनेक अवसरों पर गर्मजोशी से एक दूसरे से गले मिलना तथा एक दूसरे को ‘मेरे भाई’ कहकर संबोधित करना, यह उनके आपसी निकट संबंधों के साथ ही, दोनों देशों के भी गहरे होते रिश्तों का संकेत है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कतर यात्रा के दौरान कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के प्रति आभार जताया कि उनके देश ने भारतीय नौसैनिकों को रिहा करने का फैसला लिया. उन्होंने अमीर को भारत आने का निमंत्रण भी दिया.

एक और घटना जिसने इस्लामिक जगत का ध्यान खींचा वह रही  केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी की सऊदी अरब के पवित्र शहर मदीना की ऐतिहासिक यात्रा. उन्होंने एक गैर-मुस्लिम भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया, जिसमें विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन भी शामिल थे. गैर मुस्लिमों का मदीना के खास स्थानों पर जाना एकदम अपवाद है और बीते दशकों में ऐसे उदाहरण बहुत ही कम हैं.

सऊदी अरब द्वारा मदीना में एक गैर-मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करने का यह असाधारण कदम भारत के साथ बढ़ते द्विपक्षीय संबंधों को ही दर्शाता  है. केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की तस्वीरें इस्मामिक देशों में देखी जाती रहीं जिनमें वे बिना काले अबाया, बिना सिर पर स्कार्फ के ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करती नज़र आयीं.  भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने मदीना के मरकज़िया क्षेत्र में पवित्र अल-मस्जिद-ए-नबावी की परिधि का दौरा किया, इसके बाद ऐतिहासिक उहुद पर्वत और इस्लाम की पहली मस्जिद, क्यूबा मस्जिद की यात्रा की. विदेशी गैर-मुस्लिम प्रतिनिधिमंडलों को मदीना की पवित्र मस्जिद में ले जाया गया, जो अपने आप में अभूतपूर्व निर्णय है.

इन तस्वीरों को देखकर पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने सोशल मीडिया पर सऊदी अरब की जमकर आलोचना की और इसके लिये सऊदी अरब के लोगों ने उन्हें न केवल धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया बल्कि पाकिस्तानियों को यह भी याद दिलाया कि हमेशा आर्थिक सहायता मांगने वाले देश को दानदाता देश की आलोचना शोभा नहीं देती. बहरहाल सऊदी अरब ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल को अपने पवित्र स्थलों पर ले जाकर न केवल भारत को सम्मान दिया बल्कि दोनों देशों के संबंधों को भी नयी ऊंचाइयां दीं.

यह भारत के खाड़ी क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव का ही नतीजा है कि इंडिया-मिडिल ईस्ट- यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर, आई2यू2 तथा भारत-यूएई-फ्रांस ट्राई लेटरल जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिये गये हैं. ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट- यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर’ को विश्व में एक गेम चेंजर की तरह देखा जा रहा है, जो कि चीन के बीआरआई का भी विकल्प है. यूएई और भारत ने इस कॉरिडोर की संकल्पना को पूरा करने की दिशा में रीजनल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये पहला समझौता भी हाल ही में किया है. यह कॉरिडोर भारत के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे भारत, अरेबियन गल्फ से जुड़ जायेगा. इस परियोजना से क्षेत्रीय विकास,  आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी बढ़ेगी.

भारत और खाड़ी देशों के बीच सहयोग की महत्वपूर्ण कड़ी वहां बसे भारतीय मूल के लोग हैं. खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब तथा यूएई, ये देश शामिल हैं और इन देशों में करीब नब्बे लाख भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं. यहां रह रहे अनिवासी भारतीय, भारत में विदेशों से भेजे जाने वाले धन का सबसे बड़ा स्रोत हैं. वर्ष 2020-21 में भारत भेजे गये करीब नब्बे बिलियन डॉलर रेमिटेंसेस में से  जीसीसी देशों का हिस्सा तीस प्रतिशत रहा. इसमें भी यूएई का अकेले ही 18 प्रतिशत था.

भारत के लिये गैस और तेल की आपूर्ति का विश्वसनीय स्त्रोत खाड़ी के देश हैं, ईराक समेत इन्हीं देशों से भारत को अपनी आवश्यकता के 60 प्रतिशत तेल की आपूर्ति होती  है. कतर से भारत को अपनी आवश्यकता की सर्वाधिक एलएनजी तथा एलपीजी गैस की आपूर्ति की जाती है.

जीसीसी देश, भारत के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा तो हैं ही, साथ ही हमारे सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी भी हैं. यूएई, भारत का तीसरा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है, और सऊदी अरब चौथा. देश की बड़ी मुस्लिम आबादी को देखते हुये भी, अरब देशों से निकट संबंध, भारत के दूरगामी हितों को देखते हुये अत्यंत आवश्यक हैं. नयी दिल्ली के इन मित्र देशों की  इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) में मौजूदगी, ओआईसी के प्लेटफार्म पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित भारत विरोधी एजेंडे को काफी हद  तक कम करने में एक अहम भूमिका निभाती है.

अपने दस साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने जीसीसी देशों की 13 यात्रायें की हैं, इसमें से सात बार वे केवल यूएई गये. वे फिलिस्तीन जाते हुये ईरान, मिस्र तथा जॉर्डन भी गये, जिससे मध्य पूर्व में उनके 15 दौरे पूरे हुये. मोदी सरकार ने अरब देशों के साथ संबंध सुधारने  को अपनी प्राथमिकता रखा और यह इससे भी दिखता है कि उनकी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अपने दस साल के कार्यकाल में एक भी बार यूएई नहीं गये. यह भी एक विडंबना ही है कि मुस्लिम समुदाय की पैरवी करने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी ने इस्लामिक देशों से संबंध प्रगाढ़ करने को लेकर उतनी गंभीरता नहीं दिखायी, जितनी की हमारे दूरगामी हितों की दृष्टि से आवश्यक थी. यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि यूएई में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों के रहने के बावजूद, तीन दशकों तक कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री वहां नहीं पहुंचा. 16 अगस्त 2015 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात की दो दिवसीय यात्रा की थी, जो 34 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की इस देश की पहली राजकीय यात्रा थी.

खाड़ी के देशों के साथ संबंध आज हर स्तर पर बेहतर बनाये जा रहे हैं चाहे वो व्यापार हो, निवेश हो, रक्षा क्षेत्र हो या पीपल टू पीपल कॉन्टैक्ट हो. इसमें प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यक्तिगत रूप से उठाये गये कदमों का भी बड़ा हाथ है. पीएम मोदी ने खाड़ी देशों के शासकों से पर्सनल लेवल पर इक्वेशन बनाये हैं, उन्होंने आगे बढ़कर इन देशों के शासकों की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया है. इसके साथ ही भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर तथा एनएसए अजीत डोभाल ने भी लगातार इन देशों के साथ सम्पर्क बनाये रखकर संबंधों को प्रगाढ़ किया है. भारत की इन देशों में बढ़ती साख की एक वजह यह भी है कि नयी दिल्ली ने कूटनीतिक तौर पर इस्लामिक देशों के आपसी विवादों से दूरी बनाये रखी. क्षेत्रीय विवादों में किसी एक देश का पक्ष नहीं लिया. फिलिस्तीन मामले पर भी भारत ने अपना रुख स्पष्ट रखा और खाड़ी देशों की तरह ही टू स्टेट सॉल्यूशन पर बल दिया, साथ ही आम नागरिकों की हत्याओं का भी विरोध किया.

खाड़ी देशों से भारत के बढ़ते सहयोग के कारण दक्षिण एशिया से मध्य पूर्व और यूरोप तक विकास की एक नयी इबारत लिखी जा रही है और इसका लाभ पूरे क्षेत्र को होगा.