राम हैं विश्व संस्कृतियों के लिये एक सेतु

राम मंदिर से हो रहा भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति के स्वर्णिम युग का आगाज़

-नन्दिनी जावली

अयोध्या में भगवान राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा ने पूरे विश्व में नये सिरे से भारतीय संस्कृति को पहुंचाने का कार्य किया है. प्रभु श्री राम, मर्यादा पुरुषोत्तम, राजा राम के साथ ही कूटनीतिक महानायक के रूप में भी जाने जा रहे हैं और उनका यह पक्ष, भारतीय डिप्लोमेसी के सॉफ्ट पावर को नये आयाम देने वाला साबित होगा. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अयोध्या में प्रभु श्री राम के पुनः आगमन से भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति के स्वर्णिम युग का आगाज़ हो गया है.  अयोध्या से अब शुरुआत हुयी है रामराज्य के आदर्शों को दुनिया के सामने लाने की जिससे भारतीय सांस्कृतिक गहरायी की एक अनूठी छवि विश्व के सामने आ सकेगी. राम क्यों भारत के कण-कण में बसे हैं, भारतीयों के हृदय में सदियों बाद भी उनका साम्राज्य अमर है, राम शब्द की गहरायी सरयू के जल से होकर कैसे दुनिया के समुद्रों को जोड़ रही है, उनका नाम संस्कृतियों के लिये एक सेतु है, यही पक्ष सामने लाकर भारत एक सॉफ्ट पावर के रूप में नयी ऊंचाइयां छू सकता है.

विश्व के साठ से अधिक देशों में रामलला के अयोध्या गृह प्रवेश को लेकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये. अनेक देशों के नेताओं और राजनयिकों के बधाई संदेश इस अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय नागरिकों को प्राप्त हुये. सोशल मीडिया साईट एक्स पर पूरे विश्व से लगातार बधाई संदेशों का सिलसिला जारी है. कहीं इसे भारत की सदी बताया जा रहा है तो कहीं भारतीय संस्कृति की पुरजोर सराहना की जा रही है. दुनिया के लिये यह एक अद्भुत आश्चर्य की बात है कि हज़ारों वर्ष पहले पैदा हुये एक अवतारी पुरुष के मंदिर का उत्सव पूरे भारत में और विश्व के अनेक देशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के घरों में मनाया जा रहा है. भक्ति का ऐसा स्वरूप जिसमें सच्ची श्रद्धा, प्रेम हो और लाखों लोग प्रभु राम के टेलीविज़न पर अश्रुपूरित नेत्रों से दर्शन कर भाव विह्वल हो रहे हों, ऐसा दृश्य दुनिया के लिये किसी अचरज से कम नहीं. यह भारतीय संस्कृति का बेहद उजला स्वरूप दुनिया को दिखला गया, कैसे भारत अपने मर्यादा पुरुषोत्तम की सादगी, सहजता, स्नेह, वीरता और धैर्य के आगे नतमस्तक है. संसार के सर्वोत्तम गुणों की पराकाष्ठा है राम चरित्र और भारतीय जन-जन इसके आगे नतमस्तक है.

भारतीय अध्यात्म, दर्शन और संस्कृति में भगवान राम का अमिट, अटूट स्थान तो रहा ही है, अब राम भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति का भी अहम अंग बन गये हैं. राम के प्रेम, भाईचारे, अपनत्व व सामाजिक सद्भाव के संदेश ने फिर से भारतीय संस्कृति को अनेक देशों की संस्कृतियों से जोड़ने का कार्य किया है. अयोध्या में राम मंदिर विभिन्न देशों के नागरिकों को जैसे निमंत्रण दे रहा है कि अयोध्या पधारिये और भारतीय जीवन दर्शन में रचे-बसे राम के सिद्धांतों को आत्मसात करके  पूरी दुनिया में फैलाइये.

हिंसा, युद्ध, संघर्ष के इस वैश्विक दौर में राम एक कूटनीतिक महानायक की तरह उभर कर दुनिया को जैसे संदेश दे रहे हैं कि वार्ता से, विमर्श और समझौतों से समस्याओं का हल निकालिये. राम का जीवन दर्शन इन्हीं सिद्धांतों पर टिका था, सुग्रीव व विभीषण से मित्रता इसी आधार पर थी. रावण के साथ युद्ध से पहले राम ने शांति के कई प्रयास किये, हनुमान, अंगद  शांति का संदेश लेकर ही रावण की सभा में गये थे. कूटनीति के हारने के बाद ही राम ने युद्ध आरंभ किया. अपने साम्राज्य से बाहर निकलकर राम जहां भी गये मित्रता के गहरे संबंध बनाये, सुग्रीव व विभीषण से उनकी मित्रता उदाहरण है इस संबंध के उच्च आदर्शों का. राम की निषादराज से दोस्ती, शबरी के लिये पुत्र समान निश्छल प्रेम, हनुमान जी से ऐसा स्नेह की दोनों के संबंधों ने शाश्वत रूप ही ले लिया,  वानर सेना में शामिल सभी वानरों, भालुओं पर उनकी कृपा, जटायु, गिलहरी समेत सभी जीवों के प्रति समान भाव से स्नेह – उनके ये गुण रामलिलाओं, नृत्य नाटिकाओं, भित्ति चित्रों में पूरे दक्षिण पूर्वी एशिया में फैले हुये हैं – फिर चाहे थाईलैंड हो या इंडोनेशिया या वियतनाम. इन सभी देशों में राम मंदिर बनने से भारत के साथ जुड़ने को लेकर उत्सुकता बढ़ी है. आने वाले दिनों में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से अयोध्या पहुंचने वाले धार्मिक पर्यटकों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी.

भारतीय उपमहाद्वीप के अलग-अलग देशों में भगवान राम के अयोध्या में विराजित होने पर मंदिरों में विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये. इसमें नेपाल अपनी हिंदू जनसंख्या के कारण विशिष्ट रूप से राम उत्सव में सम्मिलित हुआ. नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मॉरीशस और अफगानिस्तान के नागरिकों ने भी भारतीयों के  इस खास समारोह में किसी न किसी रूप में शामिल होकर अपनी सद्भावना व्यक्त की. अफगानिस्तान से भगवान राम के अभिषेक के लिये आया पवित्र जल दोनों देशों के अतीत में रहे घनिष्ठ संबंधों का ही प्रतीक है. इस सभी देशों में भगवान राम को लेकर जो श्रद्धा नज़र आयी, वह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति के सबसे अहम प्रतीक के रूप में राम, अनेक देशों से भारत को एक अटूट बंधन में जोड़े हुये हैं.

अयोध्या में श्री राम मंदिर की स्थापना ने सहज ही नेपाल और भारत संबंधों को नयी ऊंचाइयां दी हैं. पिछले कुछ वर्षों से दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव देखा जाता रहा है. अब प्रभु राम ने भारत-नेपाल को न केवल अपने गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक संबंधों की याद दिलायी है परंतु एक अटूट बंधन में नये सिरे से बांध दिया है. नेपाल ने राम मंदिर के लिये  कालीगण्डकी नदी तट से दो पवित्र शिलाएं – शालिग्राम भिजवायी हैं जोकि छह करोड़ साल पुरानी हैं. इसके साथ ही अपनी बेटी सीता माता का घर बसने की खुशी में बेटी को अनेकों भेंट भिजवायी गयी हैं. 3,000 से अधिक उपहार दान किए गए हैं. नेपाल के जनकपुर को भगवान राम की पत्नी सीता जी का जन्म स्थान माना जाता है. नेपाल से बड़ी संख्या में लोग बेशकीमती आभूषण, वस्त्र, मिठाइयां, घर का सम्पूर्ण सामान लेकर अयोध्या आये और खुशी से उनकी आंखें विह्ल थीं. राम मंदिर ने अयोध्या और नेपाल के जनकपुर को पुन अतीत के गहरे संबंधों की याद दिलाकर, दोनों देशों के लोगों को फिर से एक दूसरे से जोड़ दिया है. भारत नेपाल रिलेशन्स फिर से अपनी पुरानी मित्रता की ओर अग्रसर हो रहे हैं.

अफगानिस्तान की कुभा (काबुल) नदी का पानी अयोध्या में राम मंदिर के लिए उपहार के रूप में भेजा गया है. श्रीलंका के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी अयोध्या का दौरा किया और राम जन्मभूमि को पौराणिक अशोक वाटिका से जुड़ी एक शिला भेंट की. सीता जी को रावण ने अशोक वाटिका में ही कैद करके रखा था. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले ब्रिटेन की संसद में भी श्रीराम के जयकारे गूंज उठे. ब्रिटेन की संसद में राम मंदिर के जश्न में शंख बजाए गए और हाउस ऑफ कॉमन्स के अंदर युगपुरुष की प्रतिमा भी लगाई गई. अमेरिका में राम मंदिर को लेकर गजब का उत्साह देखा जा रहा है. वहां के सड़कों पर राम के तस्वीर वाले बड़े बिलबोर्ड लगाए हैं.

यह मात्र संयोग नहीं है कि जहां एक ओर अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बन रहा है, वहीं मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की राजधानी अबू धाबी में भी पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर वैदिक वास्तुकला से बनाया जा रहा है. यूएई की सरकार ने आबू धाबी में मंदिर के लिए जमीन दान की और वहां के शासक इसमें पूरा सहयोग दे रहे हैं. भारत और यूएई के बीच सद्भाव के प्रतीक के तौर पर इस मंदिर का निर्माण हो रहा है. अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर यूएई से बधाई संदेशों का आना, और अब अगले माह अबू धाबी में हिंदू मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया जाना, दोनों देशों के बीच एक नये सांस्कृतिक युग का सूत्रपात कर रहा है. हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की यह मिसाल, भारतीय सॉफ्ट डिप्लोमेसी की बड़ी सफलता ही मानी जायेगी. यह मंदिर यूएई में बसे करीब चालीस लाख भारतीय मूल के लोगों के लिये किसी सौगात से कम नहीं है और दोनों देशों के संबंधों को प्रगाढ़ करने में मील का पत्थर साबित होगा.

 अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, यूरोप के अन्य देश, मध्य पूर्व, समेत अनेक देशों में राम नाम की गूंज रही. राम एक बार फिर संस्कृतियों को जोड़ रहे हैं, दुनिया को सह अस्तित्व का संदेश दे रहे हैं. सब को साथ लेकर चलना और सारे भेदभाव खत्म करना, उनके नाम का प्रताप है. एक ओर जहां राम,  भारत को एकता के सूत्र में पिरो रहे हैं, वहीं दुनिया को भी साथ – साथ चलने का संदेश दे रहे हैं. राम की पावन कथा रामायण के भारत में अनेकों भाषाओं में अनुवाद मिलेंगे.  बौद्ध और जैन रूपांतरणों के अलावा भारतीय भाषाओं में रामायण के कई संस्करण हैं. रामायण के कम्बोडियन, इंडोनेशियाई, फिलिपिनो, थाई, लाओ, बर्मी, नेपाली, मालदीव, कम्बोडियन, वियतनामी, तिब्बती-चीनी और मलय संस्करण भी हैं. अब समय आ गया है कि भारत एक सॉफ्ट पावर के रूप में रामायण से जुड़े देशों में अपनी कूटनीतिक पहल बढ़ाये और राम नाम से दुनिया को एकता, भाईचारे, बंधुत्व का संदेश दे.