अवैध प्रवासियों को लेकर सख्त होते पश्चिमी देश

संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप, दुनियाभर के आप्रवासियों के लिए प्रमुख गंतव्य बने हुये हैं. बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों का अमरीका तथा यूरोप पहुंचना, पश्चिमी जगत के लिये एक विकराल समस्या बन गया है. अमरीका तथा यूरोप में, आप्रवासन नीति के बारे में बहस इस बात पर केंद्रित हो गयी है कि अनाधिकृत आप्रवासियों के साथ क्या किया जाए. ये बहस  आप्रवासन को लेकर राष्ट्रीय नीतियों के साथ-साथ संपूर्ण यूरोप की नीतियों को भी प्रभावित कर सकती है. अवैध रूप से पश्चिमी देशों में घुसते आप्रवासियों ने इन सभी देशों में राजनीति पर भी असर डाला है और अल्ट्रा राइट विंग नेताओं को अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद की है. पश्चिम के देशों में दक्षिणपंथी नेताओं का बढ़ता प्रभाव अवैध आप्रवासन की भी एक देन है.

यूरोप में अनधिकृत प्रवासियों की संख्या 2015 से बेतहाशा बढ़ने लगी, जब अलग-अलग देशों से लोग वहां शरण लेने के इरादे से पहुंचने लगे. जबकि अमरीका पहुंचे अधिकांश प्रवासी, लैटिन अमेरिका, विशेष रूप से मैक्सिको के हैं, जिन्होंने करीब एक दशक पहले अमरीका में अवैध रूप से प्रवेश किया था. वर्तमान समय में अमेरिका में अनधिकृत प्रवासियों की संख्या पिछले कुछ वर्षों की तुलना में कम हो रही है. ऐसे में पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का हाल का बयान काफी विवादास्पद है, जब उन्होंने कहा कि कैसे प्रवासी देश के “खून में ज़हर” घोल रहे हैं. उनके इस वक्तव्य की अमरीका समेत पूरे पश्चिमी जगत में एक वर्ग द्वारा आलोचना की गयी तो दूसरा वर्ग खामोश रहा. चौंकाने वाली बात यह रही कि ट्रम्प स्वयं इमीग्रेंट्स की संतान और पोते भी हैं, उन्होंने दो इमीग्रेंट महिलाओं से विवाह किया जोकि उनके बच्चों की माता हैं. ट्रम्प ऐसी वंश परंपरा के साथ अपवाद नहीं हैं, ऐसे अनेक परिवार अमरीका में बसे हैं, फिर भी ट्रम्प प्रवासियों को देश के खून में ज़हर घोलने का ज़िम्मेदार मानते हैं. दरअसल उनकी चिंता और डर, पारंपरिक श्वेत ईसाई अमरिका के पतन को लेकर है और यही डर यूरोपीय नेतृत्व को भी सता रहा है. पश्चिमी देशों में विदेशियों को लेकर आशंका, भय और साथ ही गुस्सा हमेशा रहा है.

पिछले कुछ वर्षों से इराक, सीरिया, अफगानिस्तान और हाल में यूक्रेन में अस्थिरता के चलते अनेक लोग शरणार्थी बनने को मजबूर हुये. अमरीका तथा जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों ने इन्हें शरण दी परंतु जिन देशों ने इनके लिये अपने दरवाज़े खोले, वहीं इस्लामिक कट्टरपंथ के बढ़ने से ये देश आप्रवासियों विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोगों के प्रति आशंकित होने लगे हैं. इस्लामिक कट्टरपंथ का एक भयावह रूप इज़राइल पर हुये हमास के हमले के बाद, अमरीका तथा यूरोपीय देशों में नज़र आ रहा है. अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस समेत कई यूरोपीय देशों में लगातार इज़राइल के विरोध में और हमास के समर्थन में प्रदर्शन किये जा रहे हैं. कई स्थानों पर इस्लामिक कट्टरपंथियों ने यहूदियों पर हमले भी किये. इससे पश्चिमी जगत में आप्रवासियों से भविष्य में होने वाली समस्याओं को लेकर भी बहस छिड़ गयी है. कोविड के बाद सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत असर पड़ा है. ऐसे में अवैध रूप से आने वाले प्रवासी, इन देशों की अर्थव्यवस्था पर किस तरह बोझ बन गये हैं और वहां शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था पर काफी दबाव बढ़ा रहे हैं. यह भी एक कारण है, गैर कानूनी रूप से देशों में घुसने वाले प्रवासियों के विरुद्ध असहिष्णुता बढ़ने का.

अलग-अलग देशों में अवैध प्रवासियों की संख्या की बात करें तो यूएस सेंसस ब्यूरो के 2015-19 के आंकड़ों के अनुसार, अमरीका में अवैध प्रवासियों की संख्या सवा करोड़ के करीब है. यूरोपीय देशों के आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी में यह संख्या लगभग 500,000, फ्रांस में 300,000, ब्रिटेन में 200,000 और इटली में 800,000 तक है.

ब्रिटेन के लिये सबसे बड़ी समस्या है कि प्रतिवर्ष हज़ारों की संख्या में अवैध प्रवासी छोटी नौकाओं में इंग्लिश चैनल पार करके इंग्लैंड पहुंचते हैं. ब्रिटेन के गृह मंत्रालय के 4 दिसंबर के डाटा के अनुसार 2022 में 45000 अवैध प्रवासी ऐसी नौकाओं से ब्रिटेन पहुंचे. इस वर्ष यह संख्या 30000 रही. यही कारण है कि जनवरी 2023 में, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा कि “नावों को रोकना” उनकी प्राथमिकताओं में से एक है. इसी समस्या से निपटने के लिये सुनक सरकार रवांडा शरणार्थी प्लान लेकर आयी है.  पहली बार अप्रैल 2022 में इसकी घोषणा की गई, जिसके तहत यूके में आने वाले कुछ शरणार्थियों को रवांडा भेजा जाएगा. इसके लिये ब्रिटेन ने रवांडा से एक समझौता भी किया है. सरकार ने पहले कहा था कि 1 जनवरी 2022 के बाद “अवैध रूप से ब्रिटेन में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति” को वहां भेजा जा सकता है, जिसमें संख्या की कोई सीमा नहीं होगी. लेकिन, अब तक, वास्तव में कोई शरण चाहने वाला रवांडा नहीं भेजा गया है.

हाल ही में प्रधान मंत्री ऋषि सुनक ने कहा, “अत्यधिक स्पष्ट अवैध प्रवासन होना किसी देश की कानूनी प्रवासन और आव्रजन प्रणाली के लिए अविश्वसनीय रूप से विनाशकारी है, और यह राजनेताओं और सरकारों के, जनता की ओर से कार्य करने की उनकी क्षमता के बारे में लोगों के दृष्टिकोण के लिए भी विनाशकारी है.”

यूरोप के एक अन्य देश, इटली में भी अवैध प्रवासियों का भारी तादाद में आना एक बड़ी समस्या रही है. वहां सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने दशकों तक आप्रवासन पर कड़ा रुख बनाये रखा जो उनकी चुनावों में जीत का एक कारण बना. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, इटली की सबसे दक्षिणपंथी प्रधान मंत्री बनने के एक साल बाद, जियोर्जिया मेलोनी के लिये अफ्रीका से इटली पहुंच रहे लोगों को रोकना मुश्किल काम हो गया है. उन्होंने चुनावों से पहले वादा किया था कि वे अवैध प्रवासियों पर अंकुश लगायेंगी. अब इसी चुनावी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिये उनकी सरकार लगातार कदम उठा रही है.

इटली की दक्षिणपंथी सरकार ने आप्रवासन पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है, अधिकारियों को अवैध प्रवासियों को 18 महीने तक हिरासत में रखने का अधिकार दिया गया है और उन्हें रखने के लिए नए केंद्रों का निर्माण भी किया जायेगा. यह कदम सितंबर 2023 में 10,000 से अधिक विदेशियों के छोटे से इतालवी द्वीप लैम्पेडुसा पर पहुंचने के बाद उठाया गया. जितनी उस द्वीप की आबादी नहीं है, उससे अधिक लोग नौकाओं पर सवार होकर लैम्पेडुसा पहुंच रहे हैं. ट्यूनीशिया के तट से सिर्फ 100 किमी दूर लैम्पेडुसा, नए जीवन की तलाश कर रहे कई प्रवासियों के लिए यूरोप का प्रवेश द्वार बन कर उभरा है.

इटली के नए उपायों का उद्देश्य बढ़ती निगरानी के साथ तस्करी को रोकने की योजना और प्रवासियों को नौकाओं से आने से रोकने के लिये यूरोपीय संघ द्वारा घोषित यूरोपीय  नौसैनिक मिशन के साथ समन्वय से काम करना है.

हाल ही में प्रवासियों और इस्लाम के विरूद्ध कड़ा रुख रखने वाले, गीर्ट वाइल्डर्स और उनकी धुर दक्षिणपंथी पीवीवी फ्रीडम पार्टी ने नीदरलैंड्स का चुनाव आसानी से जीत लिया. पीवीवी “शरण पर रोक” और “आम तौर पर अधिक प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीति” का प्रस्ताव लेकर आयी है, साथ ही पार्टी की मंशा है कि यूरोपीय संघ के शरण और प्रवासन नियमों से देश को अलग कर ले. चुनाव जीतने के बाद गीर्ट वाइल्डर्स लगातार अवैध प्रवासियों और इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ वक्तव्य दे रहे हैं.

पीवीवी चुनाव मेनिफेस्टो में कहा गया है, “नीदरलैंड्स में असाइलम और इमीग्रेशन की बाढ़ में कमी आने से, हमारे देश का इस्लामीकरण भी रुक सकेगा.”

“नीदरलैंड्स एक इस्लामिक देश नहीं है: कोई इस्लामिक स्कूल, कुरान और मस्जिद यहां नहीं होना चाहिये,” पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा है.

अवैध प्रवासियों का अनेक संकट उठाकर लगातार यूरोप पहुंचना, सभी यूरोपीय देशों के लिये बड़ी परेशानी बन गया है. फिर चाहे, जर्मनी हो या फ्रांस, इटली या ब्रिटेन. इससे इन छोटे-छोटे देशों की अर्थव्यवस्था, रहन-सहन, सामाजिक समरसता पर भी असर पड़ा है. उनके सोशल सिक्योरिटी सिस्टम पर बढ़ते दबाव से व्यवस्थायें सुचारू चला पाना भी आसान नहीं रह गया है. वर्तमान में यूरोपीय देश, इमीग्रेशन के बारे में अलग-अलग नीतियां बनाकर इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं. यूरोपीय संघ को भी सदस्य देशों की मांग के अनुरूप देर-सवेर इस संबंध में नये नियम बनाने पड़ सकते हैं. जब तक विश्व के देश, नस्लीय हिंसा, अराजकता, युद्ध और संघर्षों से जूझते रहेंगे, तब तक अवैध प्रवासियों की संख्या भी बढ़ती रहेगी. इसका कोई एक हल नहीं है बल्कि विश्व व्यवस्था में सुधार से ही व्यापक कदम उठाकर इस संकट से पार पाया जा सकता है.